गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

मेरा चाँद


मेरा खुदगर्ज़ नहीं
वो नहीं है उन तारों सा
वो सलीका जनता है
नहीं टिमटिमाता मेरा चाँद
अपनी खूबसूरती का
वो दिखावा नहीं करता
मेरा चाँद बे-हया नहीं
कुछ सितारे अपनी चमक
से आकर्षित करते हैं मुझे
पर बादलों की लुका-छिपी
वो नहीं जानते , कत्तई नहीं
वो नहीं जानते नज़ाकत की
उस मद्धम गति को, हौले से
रुकना वो नहीं जानते कैसे
आधा चेहरा दिखाया जाए
कैसे एक दिन है खिलना 
अपने चाहनेवाले के साथ 
चलना वो नहीं जानते,सितारे
ललचाते हैं अपनी ऊंचाइयों से
पर चाँद मेरा हर वक्त क़रीब है
मेरी आँखों का सुकूँ है मेरा
चाँद मेरी देह मेरी रूह है
मेरा चाँद बे-हया नहीं...
#दीपक©✍

मेरा चाँद


शुक्रवार, 23 मार्च 2018

एक कश-मोहब्बत


एक कश-मोहब्बत...
इकतरफा इश्क की तरह भरी हैं
तन्हाइयां आवारगी के 
सफ़ेद कागज़ में बेख़याली
के फ़िल्टर से लबरेज़ है
शिद्दत की उंगलियां उसे है थामे 

लब उतावले से हुए जाते हैं
उन तन्हाइयों को दफ़न करने
उतारने को उसे भीतर सीने में
और गहराइयों तक, 
जब तक मैं, तब तक कि-
तेरी तलब न बुझा लूँ...

ऐसे ही अपनी
हसरतों को सुलगाता हूँ 
ख़ुद को कभी खुश करते या
कोसते हुए फ़िर
उन्हें राख़ कर अपने ही
पैरों से कुचल कर 
आगे बढ़ जाता हूँ...
और यही है सिलसिला
फिर कहीं किसी मोड़ पर
एक कश...
#दीपक©✍

एक कश-मोहब्बत