शनिवार, 23 दिसंबर 2017

यादों का दिसम्बर

आज सर्द हवाओं ने छुआ जब
तो सिहरन हुई
याद आया तुम कैसे सिहर जाती
थी मेरे छूने से
कि जब गुदगुदे रजाई की ओट ली
जो सुकूँ मिला तब
याद आया तुम कैसे लिपट जाती
थी मेरे बदन में भरकर
थोड़ी सी हवा कहीं से घुस रही थी
जब करवट ली भींचकर
याद आया मेरी सांसों का तुम्हारी
गर्दन के पीछे तेज़ हो जाना
और तुम्हारा आँखे मीचकर वो
पलट के मुझमें समा जाना, हाँ
धड़कनों तक आँच का आना
मेरा तकिया बन जाना
मेरे चेहरे से चेहरा रगड़ना
याद आता है कैसे जीभ से
गुदगुदी कर मेरे कान काट
लेती थी आहिस्ता , तुम कैसे मुझे
बेसब्र कर जाती थी सच में ये जो
दिसम्बर है यादों का है
तेरे मेरे जज्बातों का है

#दीपक©✍

यादों का दिसम्बर


बुधवार, 20 दिसंबर 2017

उदासी है तो क्या


कोई जो पूछ लेता है 
वजह मेरी उदासी की सोचकर
थम जाता हूँ कि वजह क्या है

ये क्या है मुझमें उदास 
ठहाका मारने वाला जो
सब को भरमाने वाला रंग है
तुझे मैं भूल नहीं पाया शायद

कोई ख़याली खूँटी धँसी है मन में
मेरी मोहब्बत टँगी रह गयी वहां
शायद रह गयी राहें वो जो कभी
सुकूँ कभी इंतज़ार कभी तन्हाई
से भेंट कराती थीं हाँ गड्ढा भी तो
है इक उम्मीदों का ...

ख़ैर इन्हें जहां बसना था बस गए
अब तो बस जीना और जीना है
तो हँसना पड़ेगा 
उदासी है तो क्या 
लोगों का काम है कहना

#दीपक©✍

उदासी है तो क्या



सोमवार, 18 दिसंबर 2017

कविता क्या है?

digitalsyaahi.blogspot.Com                         #दीपक©✍                                    Deepak Vishwakarma

मन मेरा तू पराया नहीं

सोचता तू है क्यूँ 
मन मेरा तू पराया नहीं
तो झुकता क्यूँ है, मेरी
रहनुमाई तेरी ज़ागीर है
तो क्यूँ लेता है अँगड़ाई
उनकी दुआख्वानी में,
क्या रस है कोई अफ़ीमी
कोई नशा धतूर का जो
मुझे भी है भरमाता ,क़त्ल
करने को आतुर नहीं सोचता
तू है, चल जहालत ही सही
पर इंसानियत का क्या, तू 
मेहर है मेरी तुझे पाक ही है
रहना, खुदा को पेशगी तू है
सच तुझमें है
तो मैं मुकम्मल हूँ मुझमें
सोचता तू है क्यूँ...

#दीपक©✍

मन मेरा तू पराया नहीं


शनिवार, 16 दिसंबर 2017

वहाँ परछाईं मेरी खड़ी है

digitalsyaahi.blogspot.com By :- Deepak Vishwakarma #दीपक©✍

चलो देखो ज़िन्दगी
वहाँ परछाईं मेरी खड़ी है
अकेले अकेले बस गुमसुम सी
पूछने पर भी हिलती नहीं है
मुझसे नाराज़ है
 या उसे कोई दुःख है
तुम्हें तो पता होगा 
तुम्हारे लिए ही उसे रोज़ मैंने
कुचला है क्योंकि सबसे सुना है
ज़िन्दगी बेहतर होनी चाहिए
पर मेरी अपनी छाप वो है
मेरे अपने सारे ख्वाब वो है
तुझे बेहतर करने में उसे
बदतर कर रखा है 
शायद वो ख़फा है 
मेरे मौजूदा वज़ूद से..

#दीपक©✍

वहाँ परछाईं मेरी खड़ी है

digitalsyaahi.blogspot.com By :- Deepak Vishwakarma #दीपक©✍

अशोक चक्र


तड़प प्यास बेसब्री

इन्तेहा इंतेज़ार फिर क्रोध
उठता ग़ुबार
दहकता अंतर्मन
बदला जुनून सुकून फ़िर
क्षणिक संतोष घमण्ड
गर्व उन्माद पुनरावृतियाँ
असन्तोष पश्चाताप 
पछतावा ध्यान दान
मानवता फिर
एक अशोक का हृदय परिवर्तन
परिनिर्वाण शाश्वत...
#दीपक©✍


अशोक चक्र


गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

खुश कौन है?

खुश कौन है?
मज़े हम दोनों ले रहे हैं
तू मेरे, मैं तेरे ऐ ज़िन्दगी

मैं जैसे ही दो पंक्तियाँ
सुवर्णों में लिखता हूँ तू
उसमें गोदा-गादी कर
मज़े लेती है,
खुश कौन है?

पूरा होते होते ही कोई 
पन्ना रह जाता है मेरा
क्यूँ, पलट कर कोरा 
कर जाती है,
खुश कौन है?

तेरी इन्हीं हरकतों से हि
आजिज कइयों ने किया
परित्याग है तेरा पर कहाँ
तू लजाती है,
खुश कौन है?

मज़े हम दोनों ले रहे हैं
तू मेरे, मैं तेरे ऐ ज़िन्दगी...

@#दीपक✍

खुश कौन है?


अदृश्य बन्धन

चलता चला जा सकता हूँ
तुम भी देखते रह जाओगे और वो भी
नहीं लूट के जाऊँगा नहीं कुछ तज कर
पर लेता हूँ साँस तो ख्याल आता है
की ज़िंदगी जिसने दी
जिसने चलना सिखाया
जिसके लाड़-प्यार ने काबिल बनाया
उसकी क्या गलती है
की उसको रुलाऊँ उसको क्यूँ नाहक
छोड़कर जाऊँ
तुम और वो सब तो जुड़ते बिछड़ते रहोगे
पर अपने तने से मैं क्यूँ कट जाऊँ
तुम मेहमां पंछियों से उम्मीद भी क्या
मेरा फल ही खाओगे, बीट भी करोगे 
फिर उड़ भी तो जाओगे, पर
आज भी वो सींच रहा है कल भी वो सींचेगा
मुझसे बस अपनी उम्र में इज़ाफ़ा चाहता है
मैं सब्र करने का आदि हूँ
मौसम का इंतेज़ार करना मुझे आता है।

#दीपक©✍

अदृश्य बन्धन



जी लूंगा तुझे मैं

जी लूंगा तुझे मैं, 
तू घमण्ड क्या करती है
है तो ज़िन्दगी ही,
खेल खेलती है यूँ क्यूँ मुझसे
याराना ऱख बहलाती 
क्यूँ? लेती मज़े है मेरे तू ख़ुद
भी तो है मोहताज़ मेरी,
मौत से मिलूंगा तब रोयेगी 
तू, औकात तेरी दिखा दूँ
ज़िगर है मुझमें,
तू घमण्ड क्या करती है,
है तो ज़िन्दगी ही,
पटक पटक के हौसले पस्त
किये मेरे मैं रुका क्या?
उठा मैं, पटखनी खा तुझसे
रुका नहीं तुझसे हार कर 
मैं लूँगा बदला तुझसे
लालची बनाकर, हर एक
रज़ा तेरी पूरी करूँगा मैं
औकात तेरी दिखा दूँ
जिगर है मुझमे,
तू घमण्ड क्या करती है,
है तो ज़िन्दगी ही।

#दीपक✍

जी लूंगा तुझे मैं


बुधवार, 13 दिसंबर 2017

"मैंने बनाई है एक मूरत"

मैंने बनाई है एक मूरत
जो सँवारी है मैंने इंतेज़ार से अपने
रंग डाले हैं सब अहसासों के अपने
है कच्ची मिट्टी मेरे अरमानों की ये
जिसे भिंगोया है मेरी
कल्पनाओं के रस ने 
इश्क़ ने बख़ूबी की है नक्काशी
मैंने बनाई है एक मूरत .....
पर तेरी रूहानी खुशबू
ये बहारों सी हँसी , दुनिया 
पलटने वाली आँखों के इशारे
वो बरखा सी आहट जो तेरी है
कहाँ से लाऊं तेरी छुअन को
ये तेरी अदाएं मैं कैसे चुराऊं
मैंने बनाई है एक मूरत
तन्हाइयों में लिपटी मेरी ज़रूरत...

#दीपक©✍

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बड़ा वो मुझे हैं सताते सुनो

चलो गीत गाओ कुछ गुनगुनाओ
उनकी हर अदा, हर फ़िज़ा भुलाओ
बड़ा वो मुझे हैं सताते सुनो

न रहम किया है, न खैरात कोई
मुझसे लिपट कर न टूटी न रोई
मंज़ूर किये थे हर रिश्ते जिसने
वो पल भी नहीं हैं शर्माते सुनो

वो हर एक कोना हर एक पत्थर
जहाँ बैठ सपने सजाएं हैं अक्सर
जिनके सहारे करीब आते थे वो
मूँगफली के छिलके हैं चिढाते सुनो

कहाँ खो गयी उनकी सारी हया
जिसे बांध रखा था मेरी नज़र में

वो धीरे से आना-जलाना-चिढाना
वो बातों के पुल का बढ़ते ही जाना
बहाने बनाना वो , रूठना मनाना

वो पंछी भी नहीं अब गाते सुनो
बड़ा वो मुझे हैं  सताते सुनो

#दीपक©✍

"मैंने बनाई है एक मूरत"


सोमवार, 11 दिसंबर 2017

●हर हर महादेव●

           ●महादेव●
शिव तुझमे है शिव मुझमे है
शिव ही ब्रह्माण्ड है,
वही रमा है वही रमेगा,
कण कण में अविराम बसेगा
अज्ञानी 
के ज्ञान का गागर
नदियाँ शक्ति शिव ही सागर
वही है आदि है अनन्त,
शिव सा कोई नहीं है अंत
जब मुस्काता 
नाच दिखता ,धरती डोले
बम बम भोले
नभ भी उसका धरा भी उसकी
उसी में सब है वही एकाकी
नील कंठ है नील अधर 
श्मशान भी उसी का घर
मृत्यु का अभिमान भी शिव है
हर योनि में प्राण भी शिव है
वही प्रणेता वही प्रलय 
शिव ही दाता वही विजय
है अभयंकर है सुनसान
जिसका ज्ञान है श्मशान
शिव ही सत्य है 
शिव ही सुन्दर, 
नही कोई शिव से बढ़कर
शिव तुझमे है शिव मुझमे है
शिव ही ब्रह्माण्ड है,
वही रमा है वही रमेगा,
कण कण में अविराम बसेगा।

#दीपक©✍

कविता क्या है?

कविता क्या है?
छू जाये तो द्रवित कर जाये
लग जाये तो उद्वेलित , 
मन झिलमिल को
भर दे रोमांच और एहसासों से
सफ़र कराये रूह से ब्रह्म तक
शून्य से अनन्त
लफ्ज़ जो ऐसे होते हैं कभी
ज्वलंत ख़ुद में कभी मन्द,
मस्त-रूहानी से
हवाओं की हंसी मिट्टी की खुश्बू
फ़ुहारों की अठखेलियां लिए
मदमस्त पन्ने 
इश्क़ में रब और रब में सब सा
तपती आँच में शब सा जो
मज़ा दे जाते हैं, 
इसी का नाम लोग कविता
बतलाते हैं...
इसी का नाम लोग कविता
बतलाते हैं.....
              
#दीपक©✍
****वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः
        निर्विघ्नं कुरूमेदेवः सर्वकार्येषु सर्वदा***