ख्वाइशों से महरूम नही हूँ
पर मशगूल हूँ ऐ ज़िन्दगी
ख़ारज़ारों में तेरे मुद्दत से फँसा हूँ...
इख़्तिलाफ़ जो तेरे मेरे हैं
दरमियाँ सालों से लिये बैठी है तू...
कसम ज़ख्म देने की
मैं बद-बख़्त होकर रह गया हूँ
ख़ल्क़ भी सहम जाते हैं मुझ
फ़र्द की औकात क्या
बा-हुनर मुख़ालिफ़त ख़ुल्क़
है जो तेरी मेरे चश्म-ए-तसव्वुर
को खुलने से पहले हि
क़ैद-ए-बा-इख़्तियार करती हैं....
#दीपक©✍
(मशगूल-व्यस्त )-(ख़ारज़ारों-काँटो का जंगल)
(इख़्तिलाफ़-मतभेद)-(बद-बख़्त-बदकिस्मत)
(ख़ल्क़-लोग)-(फ़र्द-व्यक्ति individual)
(मुख़ालिफ़त-विपक्ष में)-(ख़ुल्क़-आदत)
(चश्म-ए-तसव्वुर - कल्पना की आँखों)
(बा-इख़्तियार - अधिकार पूर्वक)