शुक्रवार, 23 मार्च 2018

एक कश-मोहब्बत


एक कश-मोहब्बत...
इकतरफा इश्क की तरह भरी हैं
तन्हाइयां आवारगी के 
सफ़ेद कागज़ में बेख़याली
के फ़िल्टर से लबरेज़ है
शिद्दत की उंगलियां उसे है थामे 

लब उतावले से हुए जाते हैं
उन तन्हाइयों को दफ़न करने
उतारने को उसे भीतर सीने में
और गहराइयों तक, 
जब तक मैं, तब तक कि-
तेरी तलब न बुझा लूँ...

ऐसे ही अपनी
हसरतों को सुलगाता हूँ 
ख़ुद को कभी खुश करते या
कोसते हुए फ़िर
उन्हें राख़ कर अपने ही
पैरों से कुचल कर 
आगे बढ़ जाता हूँ...
और यही है सिलसिला
फिर कहीं किसी मोड़ पर
एक कश...
#दीपक©✍

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