गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

अदृश्य बन्धन

चलता चला जा सकता हूँ
तुम भी देखते रह जाओगे और वो भी
नहीं लूट के जाऊँगा नहीं कुछ तज कर
पर लेता हूँ साँस तो ख्याल आता है
की ज़िंदगी जिसने दी
जिसने चलना सिखाया
जिसके लाड़-प्यार ने काबिल बनाया
उसकी क्या गलती है
की उसको रुलाऊँ उसको क्यूँ नाहक
छोड़कर जाऊँ
तुम और वो सब तो जुड़ते बिछड़ते रहोगे
पर अपने तने से मैं क्यूँ कट जाऊँ
तुम मेहमां पंछियों से उम्मीद भी क्या
मेरा फल ही खाओगे, बीट भी करोगे 
फिर उड़ भी तो जाओगे, पर
आज भी वो सींच रहा है कल भी वो सींचेगा
मुझसे बस अपनी उम्र में इज़ाफ़ा चाहता है
मैं सब्र करने का आदि हूँ
मौसम का इंतेज़ार करना मुझे आता है।

#दीपक©✍

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