रविवार, 14 जनवरी 2018

मन चरखी सरीखा मेरा

मन चरखी सरीखा मेरा भरा है
रूहानी इश्क़ की रेशमी डोर से
हर उलझन को सम्भल कर  सुलझाया
तब उतारा है मैंने इसमें कि
कहीं कोई अनचाही गाँठ 
न पड़ जाए मेरे इश्क़ के धागों में
मन चरखी सरीखा मेरा...
दो दिलों वाली पतंग पर तेरा नाम
लिखा है एक बार किफ़ायति
मुस्कान से इसमें अपनी सहमति
का मोनोकइट मंझा जोड़ कर
छुड़ाईया दे दो लपक कर ,
पकड़ दूंगा तुमको फिर
मन चरखी सरीखा मेरा...
हम तुम तनाएँगे अपनी मोहब्बत
संसार के बंदिशों से भी ऊँची जो
हर भेदभाव ऊँच नीच जाति और
धर्म के डब्बू-गिलासा-पाटा और
मछली-काट को मुँह चिढ़ायेगी
और उनको ऊपर ले जाने वाली 
नफ़रत की बेहया डोर को
चक चला के बगली मारेंगे
अहा! चिल्लायेंगे भाक्काटे...
#दीपक©✍

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