शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

कश्मकश

नहीं पता कि मिलना क्या है-
इस फटी-चिथड़ी ज़िन्दगी में सिलना 
क्या है,
तू ही बता तू तो सब जानता है

रोऊँ के हँसूँ -
कि उधड़ने से बचूँ, 
या बिछ जाऊँ कालीन सा और
हँसता रहूँ-पिसता रहूँ
तू ही बता तू तो सब जनता है
खो दूँ मैं क्या ,
क्या तुझसा पा लूँ
मेरे जहाँ में मिल तुझमें समा लूँ
रौशन हो जाऊँ तेरी लौ से मैं
तुझको अपना "दीपक" बना लूँ,

नहीं तो छोड़ दूँ
जग धूमिल को कुछ भी साफ नहीं जब
या जीवन के मैले बटुए में
करम के सिक्के खनखना लूँ

तू ही बता तू तो सब जनता है
नहीं पता कि मिलना क्या है-
इस फ़टी-चिथड़ी ज़िन्दगी में सिलना
क्या है.....
#दीपक©✍

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