पता नहीं क्या होता था
मन उसे देख ख़ुश होता था
दिल पे उसने जैसे मानो
अपने नाम की ढेरों पाई खींच दी
समझ तो कुछ ज्यादा नहीं पाया
हाँ पर उसके साथ ही सुकूँ आया
वो स्कूल का सच्चा प्यार
मेरी आवारगी मेरा करार
न जाने क्यूँ तक़दीर रूठी एक दिन
जैसे सपनों की साइकिल टूटी एक दिन
बड़ा मनाया गुस्सा प्यार सब दिखाया
उसे नामंजूर था या विश्वास न आया
दूर हुए हम मरा बस मैं
उन अहसासों से चिढ़ा बस मैं
कोमल हृदय पर कुठाराघात था
मैंने क्या किया मेरा क्या पाप था
जवानी की दहलीज पार करते हुए
ज़ख्म कितने ही झेले सहते हुए
कोशिश भी की बहुत हद तक
उभर पाये उस दलदल से तब तक
तभी एक दिन उसका फोन आया
मैंने अपने आपको फिर वहीं पाया
मैंने अपने आपको फिर ....
#दीपक©✍
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