शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

◆हवा और फ़क़ीर◆


12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मनभावन और प्रेरक रचना आदरणीय दीपक जी | सचमुच हवा और फकीर सा निर्मल कोई और कहाँ ? सादर आभार |

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय रेनू दी,
      बस प्रयासरत हूँ कि और अच्छा लिखूँ।

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  2. मन को छू लिए भाई पंक्ति अच्छी है और हवा भी गुलाबी चल रहे

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