◆●◆गहरी बातों के डिजिटल रास्ते◆●◆ #दीपक©✍ BestHindi-poetry-कवितायें-स्वरचित
मंगलवार, 16 जनवरी 2018
रविवार, 14 जनवरी 2018
मन चरखी सरीखा मेरा
मन चरखी सरीखा मेरा भरा है
रूहानी इश्क़ की रेशमी डोर से
हर उलझन को सम्भल कर सुलझाया
तब उतारा है मैंने इसमें कि
कहीं कोई अनचाही गाँठ
न पड़ जाए मेरे इश्क़ के धागों में
मन चरखी सरीखा मेरा...
दो दिलों वाली पतंग पर तेरा नाम
लिखा है एक बार किफ़ायति
मुस्कान से इसमें अपनी सहमति
का मोनोकइट मंझा जोड़ कर
छुड़ाईया दे दो लपक कर ,
पकड़ दूंगा तुमको फिर
मन चरखी सरीखा मेरा...
हम तुम तनाएँगे अपनी मोहब्बत
संसार के बंदिशों से भी ऊँची जो
हर भेदभाव ऊँच नीच जाति और
धर्म के डब्बू-गिलासा-पाटा और
मछली-काट को मुँह चिढ़ायेगी
और उनको ऊपर ले जाने वाली
नफ़रत की बेहया डोर को
चक चला के बगली मारेंगे
अहा! चिल्लायेंगे भाक्काटे...
#दीपक©✍
शनिवार, 13 जनवरी 2018
शनिवार, 6 जनवरी 2018
शुक्रवार, 5 जनवरी 2018
कश्मकश
नहीं पता कि मिलना क्या है-
इस फटी-चिथड़ी ज़िन्दगी में सिलना
क्या है,
तू ही बता तू तो सब जानता है
रोऊँ के हँसूँ -
कि उधड़ने से बचूँ,
या बिछ जाऊँ कालीन सा और
हँसता रहूँ-पिसता रहूँ
तू ही बता तू तो सब जनता है
खो दूँ मैं क्या ,
क्या तुझसा पा लूँ
मेरे जहाँ में मिल तुझमें समा लूँ
रौशन हो जाऊँ तेरी लौ से मैं
तुझको अपना "दीपक" बना लूँ,
नहीं तो छोड़ दूँ
जग धूमिल को कुछ भी साफ नहीं जब
या जीवन के मैले बटुए में
करम के सिक्के खनखना लूँ
तू ही बता तू तो सब जनता है
नहीं पता कि मिलना क्या है-
इस फ़टी-चिथड़ी ज़िन्दगी में सिलना
क्या है.....
#दीपक©✍
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