शुक्रवार, 23 मार्च 2018

एक कश-मोहब्बत


एक कश-मोहब्बत...
इकतरफा इश्क की तरह भरी हैं
तन्हाइयां आवारगी के 
सफ़ेद कागज़ में बेख़याली
के फ़िल्टर से लबरेज़ है
शिद्दत की उंगलियां उसे है थामे 

लब उतावले से हुए जाते हैं
उन तन्हाइयों को दफ़न करने
उतारने को उसे भीतर सीने में
और गहराइयों तक, 
जब तक मैं, तब तक कि-
तेरी तलब न बुझा लूँ...

ऐसे ही अपनी
हसरतों को सुलगाता हूँ 
ख़ुद को कभी खुश करते या
कोसते हुए फ़िर
उन्हें राख़ कर अपने ही
पैरों से कुचल कर 
आगे बढ़ जाता हूँ...
और यही है सिलसिला
फिर कहीं किसी मोड़ पर
एक कश...
#दीपक©✍

एक कश-मोहब्बत


गुरुवार, 1 मार्च 2018

रंग दो मोहें


रंग दो अपनी आँखों से
साँसों को तेज हो जाने दो
के बहुत दिन हो गए
तुम्हें कसकर भींचे हुए
दिलों को हो जाने दो गीला
बदन तो होंगे ही न
आग मिलन की बुझ जाए
के बहुत दिन हो गए

सबसे छुपकर उस कोने में
किवाड़ के पीछे खींचना
जो गवाह है हमारे
नज़दीकियों का 
के बहुत दिन हो गए

लबों को भिंगो देना 
प्यार की मस्त ठंडई में सुनो
उस दिन के तरह छा जाना
के बहुत दिन हो गए
कितनी तो सिफारिश 
करते हैं हम , अभी
खुद से मान जाना 
वैसी  होली मनाना
के बहुत दिन हो गए
#दीपक©✍

रंग दो मोहें


शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

एक दिन मिलो न


एक दिन मिलो न,
जबसे देखा है लब-ए-बाम पर
मुखड़ा तेरा 
ग़ज़ब छाया है उजाड़ में बादल
दिल के
जैसे उस दिन खिली थी फूलों के
रंग में आज ,
फ़िर वैसे ही खिलो न
एक दिन मिलो न,
चमक से चौंधिया जाए आँखे
जमाने की
वो जो दूसरे हैं गुमान वाले सब
उनकी
एक ऐसी आसमानी मोहब्बत
की रंगीन,
रेशमी पोशाक सिलो न
एक दिन मिलो न,
हाँ , रोकने को पाँव तुम्हारे नहीं
कोई आएगा
ग़र सच्चा है इश्क़ तो ख़ुदा राह
दिखायेगा
जकड़ रखी है जो रज़ा जबरन
वो जो दिल में,
ज़रा उस ज़िद से हिलो न
एक दिन मिलो न,
भौंहें सिकोड़ के निगाहों से जो 
अक्सर हो डराती
जो मुँह फेर कर बेरुख़ी से मुझे
चुपचाप हो भगाती
मैंने सहेज रक्खी हैं तेरी तस्वीर
हर एक अदा की 
नज़रों से रूह तक के गलियारे
में ऐ पत्थरदिल,
फुर्सत निकलकर पिघलो न
एक दिन मिलो न।
#दीपक©✍








एक दिन मिलो न