digitalsyaahi.blogspot.com By :- Deepak Vishwakarma
#दीपक©✍
चलो देखो ज़िन्दगी
वहाँ परछाईं मेरी खड़ी है
अकेले अकेले बस गुमसुम सी
पूछने पर भी हिलती नहीं है
मुझसे नाराज़ है
या उसे कोई दुःख है
तुम्हें तो पता होगा
तुम्हारे लिए ही उसे रोज़ मैंने
कुचला है क्योंकि सबसे सुना है
ज़िन्दगी बेहतर होनी चाहिए
पर मेरी अपनी छाप वो है
मेरे अपने सारे ख्वाब वो है
तुझे बेहतर करने में उसे
बदतर कर रखा है
शायद वो ख़फा है
मेरे मौजूदा वज़ूद से..
#दीपक©✍
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