आज सर्द हवाओं ने छुआ जब
तो सिहरन हुई
याद आया तुम कैसे सिहर जाती
थी मेरे छूने से
कि जब गुदगुदे रजाई की ओट ली
जो सुकूँ मिला तब
याद आया तुम कैसे लिपट जाती
थी मेरे बदन में भरकर
थोड़ी सी हवा कहीं से घुस रही थी
जब करवट ली भींचकर
याद आया मेरी सांसों का तुम्हारी
गर्दन के पीछे तेज़ हो जाना
और तुम्हारा आँखे मीचकर वो
पलट के मुझमें समा जाना, हाँ
धड़कनों तक आँच का आना
मेरा तकिया बन जाना
मेरे चेहरे से चेहरा रगड़ना
याद आता है कैसे जीभ से
गुदगुदी कर मेरे कान काट
लेती थी आहिस्ता , तुम कैसे मुझे
बेसब्र कर जाती थी सच में ये जो
दिसम्बर है यादों का है
तेरे मेरे जज्बातों का है
#दीपक©✍
Yaado ka april aur july kaisa hota hai.. us pe bhi kuch likho
जवाब देंहटाएंज़रूर लिखेंगे सुझाव के लिए शुक्रिया
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