बुधवार, 13 दिसंबर 2017

"मैंने बनाई है एक मूरत"

मैंने बनाई है एक मूरत
जो सँवारी है मैंने इंतेज़ार से अपने
रंग डाले हैं सब अहसासों के अपने
है कच्ची मिट्टी मेरे अरमानों की ये
जिसे भिंगोया है मेरी
कल्पनाओं के रस ने 
इश्क़ ने बख़ूबी की है नक्काशी
मैंने बनाई है एक मूरत .....
पर तेरी रूहानी खुशबू
ये बहारों सी हँसी , दुनिया 
पलटने वाली आँखों के इशारे
वो बरखा सी आहट जो तेरी है
कहाँ से लाऊं तेरी छुअन को
ये तेरी अदाएं मैं कैसे चुराऊं
मैंने बनाई है एक मूरत
तन्हाइयों में लिपटी मेरी ज़रूरत...

#दीपक©✍

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